यह एक ऐसी विरोधाभासी धारा थी, जो पक्षपात बरतते हुए दोषियों को दोहरे दृष्टिकोण से परिभाषित करती थी।
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उसने सन् 1956 में संविधान का संशोधन कर देशभर में पंचायती राज लागू करने का आदेश कार्यपालिका को दिया और साथ ही सन् 1957 में दिल्ली के शहरी क्षेत्र के लिए दिल्ली नगर निगम भी बना दिया लेकिन उसमें विरोधाभासी धारा 507 जोड़कर नगर निगम को अधिकार दे दिया कि वह किसी भी ग्रामीण क्षेत्र को शहरी क्षेत्र घोषित करके उसे अपने अधिकार क्षेत्र में ले सकती है।